हँसी के फुहारे

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न्यू जर्सी अमेरिका में 10अगस्त को खुलने वाले दुनिया के सबसे बडे हिन्दू मंदिर की फोटो NO 7


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माँ का एहसास

माँ का एहसास
मीठा एहसास हुआ मुझको

जब गोद में आयी तुम मेरे
पूर्ण हो गया जीवन मेरा
जब गोद में आयी तुम मेरे
सारी पीडा़ दूर हो गयी
रुह की ममता जाग गयी

नैनो में एक आशा छायी
जब गोद में आयी तुम मेरे
नया एक अब नाम मिला
नया रुप जीवन में खिला
पतझड़ में फिर से बहार आयी
जब गोद में आयी तुम मेरे
देखा जब पहली बार तुझे
चुँमा जब पहली बार तुझे
दिल अति आनन्दित हो गया
जब गोद में आयी तुम मेरे
डुबते को जैसे किनारा मिले
अनाथ को जैसे सहारा मिले
वो एहसास हुआ मुझको
जब गोद में आयी तुम मेरे
सुनी जब तेरी किलकारी
देखी जब तेरी मनुहारी
दिल में उमंग सा छा गया
जब गोद में आयी तुम मेरे
आशीष यही अब है मेरी
काबिलियत हो तुममे इतनी
इतराऊँ भाग्य पर मै अपनी
कि गोद में खेली तुम मेरे
laik and sehar

माँ मैं फिर जीना चाहता हूँ, तुम्हारा प्यारा बच्चा बनकर






माँ मैं फिर
माँ मैं फिर जीना चाहता हूँ, तुम्हारा प्यारा बच्चा बनकर
माँ मैं फिर सोना चाहता हूँ, तुम्हारी लोरी सुनकर
माँ मैं फिर दुनिया की तपिश का सामना करना चाहता हूँ, तुम्हारे आँचल की छाया पाकर
माँ मैं फिर अपनी सारी चिंताएँ भूल जाना चाहता हूँ, तुम्हारी गोद में सिर रखकर
माँ मैं फिर अपनी भूख मिटाना चाहता हूँ, तुम्हारे हाथों की बनी सूखी रोटी खाकर
माँ मैं फिर चलना चाहता हूँ, तुम्हारी ऊँगली पकड़ कर
माँ मैं फिर जगना चाहता हूँ, तुम्हारे कदमों की आहट पाकर
माँ मैं फिर निर्भीक होना चाहता हूँ, तुम्हारा साथ पाकर
माँ मैं फिर सुखी होना चाहता हूँ, तुम्हारी दुआएँ पाकर
माँ मैं फिर अपनी गलतियाँ सुधारना चाहता हूँ, तुम्हारी चपत पाकर
माँ मैं फिर संवरना चाहता हूँ, तुम्हारा स्नेह पाकर
क्योंकि माँ मैंने तुम्हारे बिना खुद को अधूरा पाया है. मैंने तुम्हारी कमी महसूस की है .

हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ…









हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ….
कभी डाँटती है हमें, तो कभी गले लगा लेती है माँ…..
हमारी आँखोँ के आंसू, अपनी आँखोँ मेँ समा लेती है माँ…..
अपने होठोँ की हँसी, हम पर लुटा देती है माँ……
हमारी खुशियोँ मेँ शामिल होकर, अपने गम भुला देती है माँ….
जब भी कभी ठोकर लगे, तो हमें तुरंत याद आती है माँ…..
दुनिया की तपिश में, हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ…..
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ….
प्यार भरे हाथोँ से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ…..
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ……
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ…….
लब्जोँ मेँ जिसे बयाँ नहीँ किया जा सके ऐसी होती है माँ…….
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैँ
– कुसुम
माँ मैं फिर

“वो पवित्र गीता की दोहा है”




“वो पवित्र गीता की दोहा है”
बेटी सुख की संभावना है,
बेटी ईश्वर की आराधना है।
बेटी है तो ये सुन्दर सा जहां है,
बेटी नहीं तो मानव का अस्तित्व कहाँ है?
बेटी होगी तो, घर में पायल की छन-छन होगी,
बेटी होगी तो, घर में ख़ुशी से भरी कण-कण होगी।
बेटी पावन पूजा है,
बेटी के जैसा ना कोई दूजा है।
बेटी प्रयाग की पवित्र संगम है,
बेटी है, तो भरतनाट्यम है।
बेटी सबसे पूजनीय धर्म है,
जो हर वेदना सह ले, बेटी वो मर्म है।
बेटी है तो काजल, मेहँदी, बिंदिया और सिंदूर है,
बेटी नहीं, तो ये सारे श्रृंगार नहीं।
आज बेटी ने अपने हुनर से विश्व भर को मोहा है,
इक दिन गौर से उसे पढ़ना तुम, वो पवित्र “गीता” की दोहा है।

साथी, साँझ लगी अब होने





साथी, साँझ लगी अब होने
फैलाया था जिन्हें गगन में,
विस्तृत वसुधा के कण-कण में,
उन किरणों के अस्ताचल पर पहुँच लगा है सूर्य सँजोने!
साथी, साँझ लगी अब होने!
खेल रही थी धूलि कणों में,
लोट-लिपट गृह-तरु-चरणों में,
वह छाया, देखो जाती है प्राची में अपने को खोने!
साथी, साँझ लगी अब होने!
मिट्टी से था जिन्हें बनाया,
फूलों से था जिन्हें सजाया,
खेल-घरौंदे छोड़ पथों पर चले गए हैं बच्चे सोने!
साथी, साँझ लगी अब होने! – हरिवंशराय बच्चन

राष्ट्रिय ध्वज








राष्ट्रिय ध्वज
नागाधिराज श्रृंग पर खडी हु‌ई,
समुद्र की तरंग पर अडी हु‌ई,
स्वदेश में जगह-जगह गडी हु‌ई,
अटल ध्वजा हरी,सफेद केसरी!
न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
न द्वन्द-भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आस शत्रु-शीश पर ठुकी,
निडर ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा इसे लिये हुये जियें,
अमर सदा इसे लिये हुये मरें,
अजय ध्वजा हरी, सफेद केसरी! – हरिवंशराय बच्चन

जो बीत गई सो बात गई






जो बीत गई सो बात गई

जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई – हरिवंशराय बच्चन

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,↾↿
पलक संपुटों में मदिरा भर
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
यह अधिकार कहाँ से लाया?’
और न कुछ मैं कहने पाया –
मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
वह क्षण अमर हुआ जीवन में,
आज राग जो उठता मन में –
यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था? – हरिवंशराय बच्चन

मैं कल रात नहीं रोया था


मैं कल रात नहीं रोया था
मैं कल रात नहीं रोया था
दुख सब जीवन के विस्मृत कर,
तेरे वक्षस्थल पर सिर धर,
तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!
प्यार-भरे उपवन में घूमा,
फल खाए, फूलों को चूमा,
कल दुर्दिन का भार न अपने पंखो पर मैंने ढोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!
आँसू के दाने बरसाकर
किन आँखो ने तेरे उर पर
ऐसे सपनों के मधुवन का मधुमय बीज, बता, बोया था?
मैं कल रात नहीं रोया था – हरिवंशराय बच्चन

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ













ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! – हरिवंशराय बच्चन

अग्निपथ वृक्ष हों भले खड़े,

अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। – हरिवंशराय बच्चन

पैसों से हर चीज खरीदी जा सकती है।








दुआ
दौलत कम कमाई है

मगर इज्जत और प्यार हर दिन कमाता हूँ
ऐशो आराम की जिंदगी तो नहीं है मेरी
मगर जितना है  उसे सबके साथ बाट के खाता हूँ।
जब महंगाई देखता हूँ,  तो मलाल होता है कम कमाने का।
जब बेईमानी देखता हूँ, तो बुरा लगता है ईमानदारों का हाल देखकर।
मगर फिर जब मैं अपनी थाली में से  किसी गरीब को खिलाता हूं तो पता चलता है।
कि मुझसे अमीर तो कोई हैं ही नहीं मेरे पास तो इतने लोगों की दुआएँ है।
पैसों से हर चीज खरीदी जा सकती है।
मगर खुशी प्यार ओर  सच्चे दिल से निकली दुआ नहीं।

खुशियों की महक से है बनती जिंदगी,



खुशियों की महक से है बनती जिंदगी,

सपनों की कलम से है लिखनी जिंदगी ।
कहना है तुझसे बस इतना जिंदगी ,
हर मोड़ पर, तू संभलना जिंदगी ।
जीत आसानी से मिले तो क्या जिंदगी ,
कभी-कभी दुख भी सहना जिंदगी ।
पर आखिर में तो है हँसना जिंदगी ,
कांटो के बीच है रहना जिंदगी ।
पर गुलाबों की तरह है महकना जिंदगी ।।
आखिर में है ये कहना जिंदगी ,
कि हर वक्त यूं जियो जिंदगी ।
कि अगले पल फिर मिले या ना मिले जिंदगी ।।

आज का दिन था बड़ा सुहाना "

आज का दिन था बड़ा सुहाना "

ज़हन मैं था बस एक ही तराना
की जीलूँ आज इसे जी भर के
कही पड़े न फिर पछताना
आज का दिन था बड़ा सुहाना ।

कह दूँ जिसे जो कहना आज ।।
फिर करूंगा अपना काम काज
आएगी यारों की भी बहुत याद
ऐसे शिक्षक भी कहा मिलेंगे इसके बाद
अरे कहा मिलेंगे ये पल इसके बाद।।

पहले तो "तंग "थे इसी से
पहले तो "बेरंग "थे इसी से
कोसते थे इनको बार बार ,हर बार
अब चाह है इसी की
जो न हो सकेगी पूरी ,जो न हो सकेगी पूरी ।।

जीवन का नाम है आगे बढ़ना
आगे बढ़ना, मतलब पीछें कुछ छूटना
इसका गम हाय बड़ा दुखदाई
ये पल नहीं मिलेंगे अगर दे भी दी सारी कमाई
'अगर दे भी दी सारी कमाई l

आज का दिन था बड़ा सुहाना "
ज़हन मैं था बस एक ही तराना
की जीलूँ आज इसे जी भर के
कही पड़े न फिर पछताना
आज का दिन था बड़ा सुहाना ।

कह दूँ जिसे जो कहना आज ।।
फिर करूंगा अपना काम काज
आएगी यारों की भी बहुत याद
ऐसे शिक्षक भी कहा मिलेंगे इसके बाद
अरे कहा मिलेंगे ये पल इसके बाद।।

पहले तो "तंग "थे इसी से
पहले तो "बेरंग "थे इसी से
कोसते थे इनको बार बार ,हर बार
अब चाह है इसी की
जो न हो सकेगी पूरी ,जो न हो सकेगी पूरी ।।

जीवन का नाम है आगे बढ़ना
आगे बढ़ना, मतलब पीछें कुछ छूटना
इसका गम हाय बड़ा दुखदाई
ये पल नहीं मिलेंगे अगर दे भी दी सारी कमाई
'अगर दे भी दी सारी कमाई l

. दुनिया से बेखबर ,







कुछ उन्मुक्त क्षणिकाएँ समझ लीजिये, या बे-बहरिया त्रिवेणी; या फिर फुरसतिया दिमाग की खुराफाती तबीयत का नतीजा मान कर ही झेल जाइए ....

1. दुनिया से बेखबर ,
    कुत्ते की तरह सोता मजदूर,
    मेहनत का ईनाम .... आराम !

2.  उलझन,  प्रश्न अनुत्तरित!
    जगत सरल अथवा गूढ़ ?
    किमकर्तव्यविमूढ़ !

3. लो हो गया ये भी !
    अब क्या, अब क्या ?
    वक़्त ही वक़्त कमबख्त !

4. पेट भूखा और दिल उदास,
    ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
    चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !

एक पागल था,
कुछ कुछ दिमागी घायल था,
कोई घास न देता था उसे,
पर वो खुदी का कायल था !

एक दिन आ गया, 
वो दुनिया से तंग,
सोचा काट दूँ अब, 
जिंदगी की पतंग, 
निकला चुपचाप घर से,
लेकर ये उमंग,
बाहर मूसधार बारिश,
पर साहब दबंग.

भगवान को भी शायद,
उस पर तरस आया,
उन्होंने भी उस पर,
कुछ नरमी बता दी,
इससे पहले वो कूद के,
दे  दी अपनी जान,
प्रभु ने बीच रास्ते ही,
उस पर बिजली गिरा दी !
पर शायद ऊपरवाले के हिसाब में,
कुछ गड़बड़ी हो गयी,
बिजली तो गिराई थी,
काम तमाम करने के लिए,
पर पगले की उल्टे  चाँदी हो गयी ! 

बिजली सर पर गिरी,
मगर बच गया पग्गल, 
ऊपर से हो गया उसके,
सर पर प्रकट,
एक गोला, वृताकार,
शुद्ध दुग्ध धवल !

बावले को रातों रात,
चाँदी की गोदी मिल गयी,
जो देखे उसे बोले,
"आपको तो बोधि मिल गयी !!!'  

अब सैया पहले ठेट बावरे, 
ऊपर लोगों ने पिलादी भाँग ! 
निर्गुण के गुणों का बखान,
भूखे को जैसे मिल जाए पकवान !
  
" आप परम पूज्य, आप विद्वान,
आप सर्व श्रेष्ट, आप है महान ! " 

अब पागलों के लिए तो होती,
ऐसी उलजहूल  बातें,
साक्षात  वरदान !!!
हौसले हो गए फितूरी,
अरमान  खाके  हिचगोले,
पहुँचे  ऊफान ! 

बकने लगा वो अंट संट,
जो मन आए - अंड बंड,
" मै सर्व ज्ञाता,
मुझे भेजे स्वयं विधाता !   
मेरी शरण आओ,
मैं तुम्हे मुक्ति दिलाता ! "

ऐसे पागलों से बचके रहना भाई,
इन्होनें जाने कितनो की दुर्गति करवाई,
बसी बसाई गृहस्तियों को दिया उजाड़, 
अच्छे खासे समझदारों ने इनके पीछे,
अपनी मति गँवाई !

हाए, मन का जटिल विज्ञान !
पाले जाने कै अभिमान,
यथार्थ जगत अनदेखा कर,
पाना चाहे कौन सा ज्ञान ?! 

कौन मूढ़, कौन चतुर,
कौन ऊँच , कौन नीच ?
मिटटी दफ़न मिटटी  'मजाल',
हिसाब बराबर, ख़तम दलील ! 

व्यवहार सरल,पर चिंतन  गिद्ध,
सब स्वीकार , न कुछ निषिद्ध,
जो हर स्तिथि रखे संयम,
सुख हो दुःख, रहे वो सम,
निभाए सब रह इसी जगत,
'मजाल' माने उन्हीं को सिद्ध.

ये युवाओ की पुकार है या सिंह की दहाड़ है






ये युवाओ की पुकार है
या सिंह की दहाड़ है
केसी है ये गर्जना
जो चीरती पहाड़ है
गगन भी फट पड़ा है आज
हिल रही ज़मीन है
ये कौन है चिंघाड़ता
के पिघल रही जमीन है
जिधर भी देखू आज में
उठा कर अपनी आँख को
गूँज हर दिशा में है
ये नाद बहुत घनघोर है
लगता है आज उठ खड़ा
हुआ वतन का नौजवान है
तभी गगन है डोलता
और विद्रोह की अग्नि चहुँ ओर है
बदलेंगे इस वतन को ये
इस बात से में आश्वस्त हु
ये विद्रोह है युवाओ का
राष्ट्र प्रेम से सराबोर है
प्रभु मेरे चमन में तू
इतना युवा खून दे
लहू की न कमी पड़े
ये युद्ध का अंतिम छोर है
.. ये युद्ध का अंतिम छोर है

खैर ये अनबन कभी दूर न होगी हम खुद ही है अपनी करनी के भोगी।


खैर ये अनबन कभी दूर न होगी
हम खुद ही है अपनी करनी के भोगी।
तब से तेरे और मेरे रास्ते मिलते नहीं
जब से तूने कभी चाहा नहीं
और मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी।
पर वक़्त भी अजीब चीज़ है ना
ये भागता जल्दी है और बदलता भी जल्दी है
और घूमता घूमता वही आकर रुक जाता है ।
तेरी कुछ यादें ज़हन में उमड़ी पड़ी है
ना कभी धुंधली होती है
ना कभी भूली जाती है।।

बस वक़्त में खोते खोते तेरी यादों में चले गये हम
वक़्त का भी दोष कहाँ ,वक़्त भी बस बहाना है
तुझे हर पल हर लम्हा याद करने का।
वक़्त कैसे बीत गया अचानक से
सन्नाटा सा हो गया ना
ना तेरी समझ में आया 
ना मेरी समझ में
ना तू हकीब निकला न रकीब।
पर जो भी था तू
तू था दिल के सबसे करीब।

ये यादें तो यूँही चलती जायेंगी। 
ना इन्हें कोई चुरा सकता है ना मिटा
ये तो कभी ना जाने वाली यादें है,
जो मेरे दिल में बसी है
शायद तेरे दिल में भी बसी हो
शायद तू कभी आये और कहे
'ये थी मेरी खुबसूरत यादें' ।
' चल फिर बनाते है वहीँ खूबसूरत यादें' ।।






Zindagi me thoda love sove krte h
Mohabbat ki raaho par chal pdte h
Chod duniyadaari ki chintaao ko…
Aazad panchi ki tarah udd chalte h
Zindagi me thoda love sove krte h
Apni kahani ko kuch yu badalte h
Dhadkano ko yu machalne dete h
Beparwah nadi ki trah beh chalte h
Zindagi me thoda love sove krte h
Dewangi ki hadh se aage bhd chlte h
Logo ki un mehfilo ko bhuul chlte h
Aashiqi ka asar sb par chod chlte h
Chal aaj se….
Zindagi me thoda love sove krte h

Dil par saya Hindi kavita an Zindagi





Ye kaisa saya mere dil par hai chaya
Jise dekha bi nhi or mehsus hua bhi nhi
Ajeb sa naata jo tujhse jodna hai chaha
Rishta tuta bhi nhi or tu mila bhi nhi
Bedakhal bhi tujhe karu to karu kaise
Tera kabja bhi nhi or koi vaada bhi nhi
Zindagi tera bhi vishwas kaise karu
Tune kuch liya bhi nhi to diya bhi nhi
Guzar rahi hai zindagi meri kuch is trah
Manzil mili bhi nhi to rasta bacha bhi nhi

Nakaam si kosish sad Love kavita in Hindi






is baat se wo meri ruth gaye
Uss baat ko bhulane ki nakaam si koshish kar raha hu.
Umeedo ki tuti imarat per ab,
Naya aashiya banane ki ek ajib si koshish kar rha hu.
Wafaa k badle mili sirf bewafai,
Ab ussi ko lautaane ki befizul si koshish kar raha hu.
Dil se behisaab chaha tha jise,
Ussi se gamon ka sauda karne ki koshish kar rha hu.
Ghavo se bhari lambi raaton ko,
Ugte suraj ki garmi me badalne ki koshish kar rha hu.
Bikhar gayee jo the sapne mere,
Un sapno ko phir se sajoone ki koshish kar raha hu.

तुम्हारे साथ आजकल, यूँ हर जगह रहता हूँ मैं



तुम्हारे साथ आजकल, यूँ हर जगह रहता हूँ मैं
हद से ज्यादा सोचू तुम्हें, बस यहीं सोचता हूँ मैं
पता नहीं हमारे दरमियान, यह कौनसा रिश्ता है
लगता है के सालों पुराना, अधूरा कोई किस्सा है
तुम्हारी तस्वीरों में मुझे, अपना साया दिखता है
महसूस करता है जो यह मन, वहीं तो लिखता है
तुम्हारी आवाज़ सुनने को, हर पल बेक़रार रहता हूँ
नहीं करूँगा याद तुम्हें मैं, खुद से हर बार कहता हूँ
नाराज़ ना होना कभी, बस यहीं एक गुज़ारिश है
महकी हुई इन साँसों की, साँसों से सिफ़ारिश है
बदल जाएं चाहे सारा जग, पर ना बदलना तुम कभी
ख़्वाबों के खुशनुमा शहर में, मिलने आना तुम कभी ।

छोटी सी नाजुक कली… और फिर गुलाब बन गयी



किसी का सवाल बन गयी
तो किसी का खयाल बन गयी
छोटी सी नाजुक कली…
और फिर गुलाब बन गयी

निखरता शबाब बन गयी
ग़ज़ल की किताब बन गयी
छोटी सी नाजुक कली…
और फिर गुलाब बन गयी

आँगन की गुड़िया अब देखो
बड़ी सी मिसाल बन गयी
छोटी सी नाजुक कली…
और फिर गुलाब बन गयी

घर की नवाब बन गयी
आशिक़ का ख्वाब बन गयी
हसीन महताब बन गयी
छोटी सी नाजुक कली…
और फिर गुलाब बन गयी

जो देखे वही हैरान हो जाए दुश्मन भी तेरा कद्रदान हो जाए





जो देखे वही हैरान हो जाए
दुश्मन भी तेरा कद्रदान हो जाए
आग बन जाए गुलिस्तां यहां
गर कामिल तेरा ईमान हो जाए
इतना भी अकेला न रहना कभी
के खाली दिल का मकान हो जाए
बोझिल लगने लगती हैं ये साँसें
ज़िन्दगी जब इम्तिहान हो जाए
सुनता नहीं वो फिर किसी की
जब दिल यह बेईमान हो जाए
अल्फ़ाज़ कहो न उर्दू में कुछ
शहद सी यह जुबान हो जाए

किसान की जमीन को गलत तरीके से बहला फुसला कर के कब्जे में किया

  किसान  की  जमीन  को गलत तरीके  से  बहला  फुसला कर के                                            कब्जे  में किया ...

hasy kavita