कुछ उन्मुक्त क्षणिकाएँ समझ लीजिये, या बे-बहरिया त्रिवेणी; या फिर फुरसतिया दिमाग की खुराफाती तबीयत का नतीजा मान कर ही झेल जाइए ....
1. दुनिया से बेखबर ,
कुत्ते की तरह सोता मजदूर,
मेहनत का ईनाम .... आराम !
2. उलझन, प्रश्न अनुत्तरित!
जगत सरल अथवा गूढ़ ?
किमकर्तव्यविमूढ़ !
3. लो हो गया ये भी !
अब क्या, अब क्या ?
वक़्त ही वक़्त कमबख्त !
4. पेट भूखा और दिल उदास,
ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !
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