अरे ! आज तो पड़ी बड़ी, कड़ाके की ठंड है !

हास्य गीत : अरे ! आज तो पड़ी बड़ी, कड़ाके की ठंड है !

कुछ दिनों से मौसम खुशनुमा हो गया है. सुबह की हवाएँ ठंडक लिए हुई है. एक आद हफ्ते में ठण्ड पूरी तरह से शबाब में आ जानी चाहिए... बहरहाल, एक हास्य गीत ठण्ड पर ....

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है !
ठिठुर ठिठुर के भर रही,
दिल में उमंग है !
इनदिनों है काँपता,
फिरे  सारा बदन,
बचाते फिर रहें है हम ,
अपना पूरा तन,
ऊपर से बाहर छाया है ,
कोहरा घुप घन,
घर से बाहर जाने का,
बिलकुल करे न मन !
दुनिया में सबसे हसीं जगह,
आज ये पलंग है !
दुबके रहना रजाई में ही,
आज तो पसंद है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है ! ....

शून्य के करीब,
डोलता है तापमान,
बाल्टी का पानी,
बरफ होने को मेरी जान !
हमाम जाने में,
निकलते है मेरे प्राण !
गीज़र न हो तो,
गैस पर गरम करो श्रीमान!
की मिज़ाज आजकल ,
मौसम का अंड बंड है !
ठंडे पानी की छुअन से ही,
तबीयत होती झंड है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है ! ....

कंपकंपाती आवाज में,
गुनगुनाते मौसम आया !
जेब हाथ सीटी ,
बजाते मौसम आया !
सूत सूत खूब,
खाने का मौसम आया,
फिर से एक बार ,
है हमने ये पाया की ,
पकौड़े  ये जन्दगी के,
बहुत अहम् से अंग है !
स्वर्ग है यहीं पे जो,
चटनी भी अगर संग है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है ! ....

नाक बहती यूँ की,
समंदर कोई उफान !
खाँस खाँस आ गए,
हलक में मेरे प्राण !
टोपी, मफलर, दस्तानों का,
सब तरफ बखान,
स्वेटर, जैकट, जो भी गरम,
है इनदिनों महान !
उफ़! इस ठंड का प्रकोप,
हमें लगे अनंत है !
धैर्य धरो पार्थ !
की आगे आता वसंत है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है !  ....

नयन जल भरत, टपक टपक बहत,

बिना मात्रा की कविता .. !


नयन जल भरत,
टपक टपक बहत,
हरदय करत दरद,
अनवरत !

सब कहत,
वह बस - अप गरज,
पर,
यह मन,
न सहमत !

करत नटखट वह,
हम फसत !

हम कहत कहत थकत,
यह मगर, हठ करत,
बस खट -पट , खट- पट,
सतत !

हर बखत,
बस यह रट,
"दरसन ! दरसन !"

बस एक झलक,
फकत,
कमबखत !

' धत !!!' - कलात्मक हास्य (बिना मात्रा )



धत !!! ' : हास्य-कविता ( Hasya Kavita - Majaal )

' धत !!!'  - कलात्मक हास्य (बिना मात्रा )

' तब कब ? '
' कल ! '

'तवम न अवगत,
वह कहवत -  न टल कर पर, कर अब !
तवम इक इक हरकत,
हमर प्रण हर !
तवम अधर - रस रस !
सब इनदरय तड़पत फड़ फड़ !
न बन हरदय पतथर !
बस एक,
एक बस !
लब पर लब सपरश ! '

'यह समय ?
न प्रशन !'

' तब कब ? रत बखत ? '

' धत  !!! '

' च न क ट ! ' - हास्य-कविता

' च न क ट ! ' - हास्य-कविता ( Hasya Kavita - Majaal )

उफ़ !
वह समय !
जब तवम,
यह जगत,
उपसथत !

तवम परम जड़ मत !
सब यतन-जतन,
सब  गरह,
तवम समक्ष,
असफल !
' यह मम रच ?! '
सवयम भगवन अचरज !

यह बड़ कद कठ,
न कम धम करत ,
बस धन खरच,
खपत खपत फकत !
हमर नक दम,
जब तब !

कमबखत !
करम जल !
हम गय पक !
समझ यह  हद !
अब जल सर चढ़ !
हमर सबर ख़तम !

अगर अब करत उलट पलट !
तवम पठ, हमर लठ !
बक बक न कर,
हम धर,
एक चनकट !

दर्शन हास्य - " प र व च न ! "


दर्शन हास्य - " प र व च न ! "

भगवन !
यह जगत भगदड़ !
सब तरफ भगमभग !
" हम परथम ! हम परथम !" सब बस यह रट !
मन व्यथत !
यह जगत,
लगत असत मम !
बस उलझन उलझन !
यह प्रशन, मम समझ पर !
मदद !!!
हल ! भगवन ! हल !

वत्स 'भरम मल' !
जगत सरल !
न प्रशन , न उत्तर, न लक्ष्य !
यह बस यह ; जस तस  !
यह सब भरम, दरअसल,  मन उपज !
जब मन भरमन सतत ,
तब हरदय धक धक !
धड़कन बढ़त - न वजह !
अतह, मत मचल !
धर सबर !

जब  जब मन असमनजस,
तब नयन बन्द,
कर  स्मरण मम !
हम सत्य !

हम अटल !
चरम, हम परम !
हम ब्रह्म !

कर श्रवण वचन मम !
जब मन व्यथत,
कर गरहण, अन्न जल,
हलक भर भर !
ढक  तन,
कर शयन - गहन !
तज सब मम पर !
तवम सब असमनजस, सब भय,
हम लय हर!

रह मस्त,रह मगन !
बस यह - यह बस !
फकत !

जगत सरल !

काला हास्य - ' म र ण '

fany

काला हास्य - ' म र ण '

बचपन, हमदम
हस, ग़म,
सब समरण,

एक एक कर,
मगर, न लय,
सब उलट  पलट,
सरपट  धड़ धड़  !
न जल हलक
मगर,
बदन,
तर ब तर !
  
सस कम पल पल,
कम दम क्षण क्षण,
च,
तत पशचत,  
ख़तम सब  !
धन, घर, यश,
सब रह गय धर !
मट दफ़न मट !
सब परशन  हल,
पर,
हर जन असफल,
सकल !

किसान की जमीन को गलत तरीके से बहला फुसला कर के कब्जे में किया

  किसान  की  जमीन  को गलत तरीके  से  बहला  फुसला कर के                                            कब्जे  में किया ...

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