ये युवाओ की पुकार है या सिंह की दहाड़ है






ये युवाओ की पुकार है
या सिंह की दहाड़ है
केसी है ये गर्जना
जो चीरती पहाड़ है
गगन भी फट पड़ा है आज
हिल रही ज़मीन है
ये कौन है चिंघाड़ता
के पिघल रही जमीन है
जिधर भी देखू आज में
उठा कर अपनी आँख को
गूँज हर दिशा में है
ये नाद बहुत घनघोर है
लगता है आज उठ खड़ा
हुआ वतन का नौजवान है
तभी गगन है डोलता
और विद्रोह की अग्नि चहुँ ओर है
बदलेंगे इस वतन को ये
इस बात से में आश्वस्त हु
ये विद्रोह है युवाओ का
राष्ट्र प्रेम से सराबोर है
प्रभु मेरे चमन में तू
इतना युवा खून दे
लहू की न कमी पड़े
ये युद्ध का अंतिम छोर है
.. ये युद्ध का अंतिम छोर है

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