है धरा ये, पृथ्वी भी यही प्यार से पाए हैं इसने नाम कई



  • है धरा ये, पृथ्वी भी यही
    प्यार से पाए हैं इसने नाम कई
    धरती माँ कहकर पुकारते हैं इसे सभी
    हर भाग है इसका अनुपम
    हो फिर हरी-भरी भूमि
    या मरुस्थल रेतीली तपती
    कहीं पर बहती है शीतल नदी की धारा
    कहीं पर इसके अंदर जलता है आग का गुब्बारा
    मौसम का भी मिलता है अलग-अलग अंदाज यहाँ
    माटी इसकी चन्दन सी जिसे प्रकृति ने खुद सँवारा
    देती है मौके कई साकार करने को अपनी कल्पनाएँ
    करके समर्पित स्वयं को जीवन पर….
    इसने बड़े लाड़ से जीवों को पुचकारा
    है जितनी शांत और सरल ये….
    उतनी हीं हो जाती है विध्वंसक और विकराल
    जब भी इसने गुस्से से हुंकारा
    हर मंजर इसका बन जाता है मातम और तबाही का खेल सारा
    हर भूभाग है इसका भिन्न एक-दूसरे से
    भांति-भांति के रंग-रूपों से इसने है अपनी दुनिया सजाई
    बर्फीले पहाड़ों की कंदराएं हो या चट्टानी गुफाएँ हो
    चहकते पंछी और तरह-तरह के जीव-जन्तुओं की अल्हड़ अटखेलियों को इसने है प्यार से स्वीकारा
    नहीं किया भेद कैसा भी हर किसी का किया स्वागत है यहाँ
    है जीवन यहीं, है मृत्यु यहीं
    सुख-दुःख, विश्वास-अविश्वास, हार-जीत, मिलना-बिछड़ना रिश्तों की कहानी यहीं
    नर्क भी यहीं है स्वर्ग भी यहीं है
    हर दास्ताँ शुरू यहीं और खत्म भी यहीं है
    प्यार से जो भी इससे पेश आया, इसने उस पर अपना सर्वस्व वारा
    है धरती ये इसके आँचल में हीं है संसार समाया
    – ज्योति सिंहदेव

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