सखी रे ! है तुझको क्या याद
पीहर की वो प्यारी बात
बडे़ मौज से रहते थे हम
खुशी का जीवन जीते थे हम
सखियों के संग स्कूल जाते
आते वक्त बाग भी जाते
पेड़ पर चढ़के फल को खाते
बाग की ताजी हवा भी लेते
चिन्ता उलझन ना थी किसी दिन
कितने प्यारे थे वो दिन
छोटे-मोटे कार्य भी करते
तो भी बडी़ सराहना सुनते
माँ संग कभी जो हाथ बटाते
पूरे कार्य का श्रेय थे लेते
भले नासमझ थे तब हम फिर भी
मन स्वच्छ और स्वस्थ थे हम
हो गये भले समझदार अब
पर वो सुकुन नहीं है अब
हँसते गाते रहते थे हम
रानी बिटीया कहलाते थे हम
अब भी करती हूँ जब मैं याद
मन हो जाता बडा़ खुशहाल
बचपन की वो न्यारी बात
पीहर की वो प्यारी याद
– कंचन पाण्डेय Gurusandi Mzp UP
पीहर की वो प्यारी बात
बडे़ मौज से रहते थे हम
खुशी का जीवन जीते थे हम
सखियों के संग स्कूल जाते
आते वक्त बाग भी जाते
पेड़ पर चढ़के फल को खाते
बाग की ताजी हवा भी लेते
चिन्ता उलझन ना थी किसी दिन
कितने प्यारे थे वो दिन
छोटे-मोटे कार्य भी करते
तो भी बडी़ सराहना सुनते
माँ संग कभी जो हाथ बटाते
पूरे कार्य का श्रेय थे लेते
भले नासमझ थे तब हम फिर भी
मन स्वच्छ और स्वस्थ थे हम
हो गये भले समझदार अब
पर वो सुकुन नहीं है अब
हँसते गाते रहते थे हम
रानी बिटीया कहलाते थे हम
अब भी करती हूँ जब मैं याद
मन हो जाता बडा़ खुशहाल
बचपन की वो न्यारी बात
पीहर की वो प्यारी याद
– कंचन पाण्डेय Gurusandi Mzp UP
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