मम्मी जी ने बनाए हलुआ-पूड़ी आज,
आ धमके घर अचानक, पंडित श्री गजराज.
पंडित श्री गजराज, सजाई भोजन थाली,
तीन मिनट में तीन थालियाँ कर दीं खाली.
मारी एक डकार, भयंकर सुर था ऐसा,
हार्न दे रहा हो मोटर का ठेला जैसा.
मुन्ना मिमियाने लगा, पढने को न जाऊं,
मैं तो हलुआ खाऊंगा बस, और नहीं कुछ खाऊं.
और नहीं कुछ खाऊं, रो मत प्यारे ललुआ,
पूज्य गुरूजी ख़तम कर गए सारा हलुआ.
तुझे अकेला हम हरगिज न रोने देंगे,
चल चौके में, हम सब साथ साथ रोयेंगे.
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