संबंधों को यार निभाना सीख गया
हाँ, मैं भी अब आँख चुराना सीख गया
वो है मदारी, मैं हूं जमूरा दुनिया का
पा के इशारा बात बनाना सीख गया
नंगे सच पर डाल के कंबल शब्दों का
अपनी हर करतूत छिपाना सीख गया
दिल दरपन था, सब कुछ सच कह देता था
उसकी भी मैं बात दबाना सीख गया
वो भी चतुर था, उसने सियासत सीख ही ली
धोखा देना, हाथ मिलाना सीख गया
उसको दे दो नेता पद की कुर्सी, वो
वादे करना और भुलाना सीख गया
सीख गया सुर-ताल मिलाना मैं भी ‘अजय’
वो भी मुझको नाच नचाना सीख गया
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